क्या आप जानते है कोड़ीमार होली कहाँ खेली जाती है….
आदित्य शर्मा।
जयपुर। जहाँ एक ओर राजस्थान का पुष्कर क्षेत्र अपनी होली के लिए देश विदेश में मशहूर है, इस ही प्रकार राजस्थान के कई ज़िले ऐसे भी है जहाँ आपको कुछ अलग प्रकार की होली देखने को मिलती है। ख़ुशी और रंगों के इस त्योहार में आज डिजिटल बाल मेला आपको लेकर जाएगा राजस्थान की इन्हीं होली के सफ़र में।
आइये जानते है-
कोड़ीमार होली, टोंक–
ऐतिहासिक कोड़ामार होली का अपना ही रोमांच होता है। आपको बता दें हीरा चौक में एक बड़े लोहे के कड़ाव में पानी भरकर इसमें रंग डाला जाता है। इस कड़ाव से रंग लेने के लिए जैसे ही समाज के पुरुष आते हैं और महिलाएं रंग से भरे कड़ाव की रक्षा करती हैं। महिलाएं रंग भरने वाले युवक का पानी से भीगे कोड़े से स्वागत करती हैं। इस दौरान कोड़ा मारने वाली महिलाएं और कोड़ा खाने वाले युवक आनंद और रोमांचित होते हैं। इसकी शुरुआत और खत्म करने की भी परम्परा है। समाज का प्रबुद्ध व्यक्ति पानी की बाल्टी भरने के साथ ही इसकी शुरुआत होती है और इसी तरह विसर्जन। इसके बाद चतुर्भुज तालाब जाकर राजाजी की बावड़ी में गुर्जर समाज के लोग कबड्डी खेलते हैं। टोंक में धुलेंडी के दिन डबल रोमांच रहता है। एक तो सुबह निकलने वाली बादशाह की सवारी और दूसरी तरफ कोड़ामार होली का रोमांच होली की खुशी को दोगुना कर देता है।

राजा की सवारी, ब्यावर-
राजस्थान के सवारी नाट्य में से एक बादशाह की सवारी कई शहरों में निकाली जाती है किंतु अजमेर से करीब 50 किलोमीटर दूर स्थित ब्यावर कस्बे में हर साल बड़े धूमधाम से निकाली जाने वाली हिंदुस्तान के एक दिन के बादशाह की सवारी अत्यंत प्रसिद्ध है। इसे बादशाह का मेला भी कहा जाता है। यह सवारी उत्सव बादशाह अकबर के जमाने से ही यहाँ होली के दूसरे दिन प्रतिवर्ष मनाया जाता है जिसमें बादशाह के रूप में अकबर के नौ रत्नों में से एक राजा टोडरमल की सवारी निकाली जाती है। कहा जाता है कि अकबर ने खुश होकर राजा टोडरमल को एक दिन की बादशाहत सौंपी थी। बादशाहत मिलने के बाद टोडरमल इतना खुश हुए कि वे हाथी पर सवार होकर प्रजा के बीच आए और हीरे-मोती के अलावा सोने व चांदी की अशर्फियां लुटाकर उन्होंने अपनी खुशी प्रकट की थी।
उस समय तो टोडरमल ने अशर्फियां लुटाई थी, लेकिन अब अशर्फियों की जगह गुलाल लुटाई जाती है। बादशाह से मिली खर्ची यानी गुलाल को लोग अपने घरो में ले जाते हैं। लोगों का विश्वास है कि खर्ची उनके घर में बरकत लाती है। कहा जाता है कि खुशी के इस अवसर पर अकबर के नवरत्नों में से एक तथा राजा टोडरमल के मित्र बीरबल भी दिल खोलकर नाचे थे। बीरबल के नाचने की परम्परा आज भी इस सवारी में निभाई जाती है। इस मेले में संपूर्ण शहर में गुलाल ही गुलाल हो जाती है तथा लोग खुशी से नाचते गाते हुए आनंद लेते हैं।

फूलों की होली, जयपुर–
जयपुर के विश्व प्रसिद्ध गोविन्द देव जी मंदिर में फाग के दौरान फूलों की होली खेली जाती है। जहाँ हजारों किलों फूल से भक्त गोविन्द देव जी के साथ होली खेलते है।

पत्थर मार होली, डूंगरपुर, बाड़मेर और जैसलमेर-
राजस्थान के डूंगरपुर जिले के गांव भीलूडा में पत्थर मार होली खेलने की परंपरा विगत दो सौ सालों से चली आ रही है। होली के मौके पर इस गांव में रंग व गुलाल की जगह पत्थर बरसाए जाते हैं। यहां पर पत्थर से लगने वाली चोट के बाद खून बहने को शुभ शगुन माना जाता है। कई लोग इस आयोजन में शामिल होने आते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें की इस होली के दौरान लोगों के पास बचने के लिए ढाल भी रहती है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें डिजिटल बाल मेला बच्चों को एक मौका दें रहा है, अपना लेख प्रकाशित करने का। आप भी अपने क्षेत्र की विशेष होली परम्पराओं को दुनिया से साझा कर सकते है, डिजिटल बाल मेला के Whatsapp नंबर 8005915026 पर।
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