जानिए क्यों मनाया जाता है राष्ट्रीय हथकरघा दिवस…

जानिए क्यों मनाया जाता है राष्ट्रीय हथकरघा दिवस ।

बाल लेखिका कशिश।

भारत में प्रत्येक वर्ष 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष यह राष्ट्रीय हथकरघा दिवस का 9वां स्मरणोत्सव होगा। मुख्य लक्ष्य पारंपरिक विरासत को आगे बढ़ाने और वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने में उनके योगदान के लिए देश में विशाल हथकरघा समुदाय को श्रद्धांजलि देना है।
इस दिन भारतीय लोकल हैंडलूम (Local Handloom) को प्रोत्साहित किया जाता है। इंडियन ब्रांड्स और खादी (Khadi) को विश्वभर में पहुंचाने की पहल की जाती है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य आर्थिक रूप से हथकरघा उद्योग को मजबूत बनाना और इसे दुनिया में ब्रांड के तौर पर पेश करना है।
हथकरघा दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य लघु और मध्यम उद्योग को बढ़ावा देने का है। यह वस्त्र मंत्रालय के तहत आता है। बुनकर समुदाय को सम्मानित करने और भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में उनके योगदान को स्वीकार करने के लिए हथकरघा दिवस मनाया जाता है।
इस दिवस का उद्देश्य न केवल हाथ बुनकर समुदाय का सम्मान करना है बल्कि इस क्षेत्र में मौजूदा चुनौतियों का समाधान भी करना है। खराब बुनियादी ढांचा, पुराने करघे और प्रमुख बाजारों तक पहुंच की कमी कुछ ऐसी चुनौतियां हैं जिन पर सरकारों को हथकरघा क्षेत्र के महत्व को बताकर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

हथकरघा उद्योग से घरेलू उत्पादों की मांग को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार को मेक इन इंडिया, वोकल फॉर लोकल और आत्मनिर्भर भारत जैसे कार्यक्रमों को बढ़ावा देना चाहिए।
राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाने का उद्देश्य
इसका उद्देश्य देश की सामाजिक-आर्थिक वृद्धि सुनिश्चित करने में भारतीय कपड़ा उद्योग की भागीदारी और सहभागिता को पहचानना और उसकी सराहना करना है।
इसका उद्देश्य भारत की हथकरघा परंपरा को संरक्षित करना और हथकरघा उद्योग से जुड़े लोगों के लिए अधिक संभावनाएं प्रदान करना भी है।
लक्ष्य भारतीय कपड़ा क्षेत्र की दीर्घकालिक व्यवहार्यता की रक्षा करना भी है, जिससे हथकरघा कारीगरों को आर्थिक रूप से मजबूत किया जा सके और उनकी बेहतरीन कलात्मकता पर गर्व बढ़ाया जा सके।

प्रधानमंत्री द्वारा चेन्नई के कॉलेज ऑफ मद्रास के शताब्दी कॉरिडोर पर राष्ट्रीय हथकरघा दिवस का उद्घाटन किया गया था। बता दें पहली बार 7 अगस्त, 2015 में मनाया गया था। इसके बाद से ही यह हर साल 7 अगस्त को मनाया जाता है। साल 1905 में 1905 में लार्ड कर्ज़न ने बंगाल के विभाजन की घोषणा की, तब इसी दिन कोलकाता के टाउनहॉल में एक महा जनसभा से स्‍वदेशी आंदोलन (Swadeshi Movement) की शुरुआत हुई थी।

राष्ट्रीय हथकरघा दिवस का इतिहास
7 अगस्त को ‘स्वदेशी’ आंदोलन की स्मृति में राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाने के लिए नामित किया गया था। इसलिए, हथकरघा दिवस और स्वदेशी आंदोलन के बीच एक मजबूत संबंध है।

बंगाल विभाजन के दौरान स्वदेशी आंदोलन मजबूत हुआ। 7 अगस्त, 1905 को कलकत्ता टाउन हॉल में भारतीय निर्मित वस्तुओं के पक्ष में विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार की आधिकारिक घोषणा शुरू हुई। यह आंदोलन बाल गंगाधर तिलक के स्वदेशी सिद्धांत पर आधारित था।
भारत के हथकरघा बुनकरों और संबद्ध कर्मचारी समुदायों में 70% महिलाएं हैं। अत: यह नारी मुक्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
इसके अलावा, चौथी अखिल भारतीय हथकरघा जनगणना 2019-20 के अनुसार, लगभग 31.45 लाख परिवार हथकरघा, बुनाई और संबंधित गतिविधियों में शामिल हैं, जिससे वे अपनी आजीविका चलाते हैं।
यह दिवस मनाने के लिए, कपड़ा मंत्रालय ने तीन राज्यों में हथकरघा शिल्प गांवों का निर्माण किया है: मोहपारा गांव, असम में गोलाघाट जिला, कोवलम, केरल में तिरुवनंतपुरम जिला, और कनिहामा, श्रीनगर में बडगाम जिला।
स्थानीय बुनकरों को कच्चा माल और बाज़ार तक पहुंच प्राप्त करने में सहायता करें: आप कुछ स्वयंसेवी कार्य या वित्तीय सहायता प्रदान करके भी स्थानीय बुनकर की सहायता कर सकते हैं।
भारतीय हथकरघा के बारे में जागरूकता बढ़ाएं: सोशल मीडिया पर मौजूद कोई भी व्यक्ति ऐसा कर सकता है। यह अन्य नागरिकों को इस बात के बारे में अधिक जागरूक करेगा कि हस्तनिर्मित सामान निर्मित सामान से बेहतर क्यों हैं।
जुलाई 2015 में, केंद्र सरकार ने 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस घोषित किया।
राष्ट्रीय हथकरघा दिवस देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में हथकरघा उद्योग के महत्व के बारे में जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से मनाया जाता है।
7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के रूप में चुना गया। क्यों? स्वदेशी आंदोलन की स्मृति में, जो 1905 में इसी दिन शुरू किया गया था।
ब्रिटिश सरकार द्वारा बंगाल के विभाजन के विरोध में कलकत्ता टाउन हॉल में आंदोलन शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य घरेलू उत्पादों और उत्पादन प्रक्रियाओं को पुनर्जीवित करना था।
हथकरघा क्षेत्र महिला सशक्तिकरण की कुंजी है। 70% से अधिक हथकरघा बुनकर और संबंधित श्रमिक महिलाएं हैं।
भारत में कृषि के बाद हथकरघा सबसे बड़े रोजगार प्रदाताओं में से एक है। देश में यह क्षेत्र लगभग 23.77 लाख हथकरघा से जुड़े 43.31 लाख व्यक्तियों को रोजगार प्रदान करता है।
इन संख्याओं में से 10 प्रतिशत अनुसूचित जाति (एससी) से हैं, 18% अनुसूचित जनजाति (एसटी) से हैं, और 45% अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से हैं।
भारत में, हथकरघा क्षेत्र कपड़ा उत्पादन में लगभग 15% योगदान देता है और देश की निर्यात आय में भी योगदान देता है।

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