आईए जानते है उदयपुर में स्थित एकलिंगजी मंदिर के बारे में…

आईए जानते है उदयपुर में स्थित एकलिंगजी मंदिर के बारे में।

 

पारस माली।

 

एकलिंगजी मंदिर राजस्थान के सबसे लोकप्रिय मंदिरों में से एक है और यह उदयपुर से 22 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। एकलिंगजी मंदिर हिंदू धर्म के भगवान शिव को समर्पित है और इसकी शानदार वास्तुकला हर साल कई पर्यटकों को यहाँ खींच लाती है। यह दो मंजिला मंदिर अपनी पिरामिड शैली की छत और अनोखे नक्काशीदार टॉवर के साथ शानदार दिखता है। मंदिर की बाहरी दीवारें सीढ़ियों से फैली हुई हैं जो शांत जल को छूती हैं।

बप्पा रावल द्वारा 734 ई. में स्थापित, एकलिंगजी को मेवाड़ शासकों की शासक मूर्ति माना जाता है। इस हॉल में प्रवेश करने पर, आपको नंदी की एक सुंदर चांदी की छवि दिखाई देगी और मंदिर के अंदर, क्रमशः काले पत्थर और पीतल में नक्काशीदार नंदी की दो अन्य छवियां हैं। यह मंदिर एक मनमोहक सुगंध से भरा हुआ है और एकलिंगजी (भगवान शिव) की एक आकर्षक चार-मुखी मूर्ति के लिए जाना जाता है जो काले संगमरमर से बनी है। इसकी ऊंचाई लगभग 50 फीट है और इसके चार चेहरे भगवान शिव के चार रूपों को दर्शाते हैं। चांदी के सांप से सजी शिवलिंग एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण है।

एकलिंग राजस्थान के उदयपुर जिले में स्थित एक मंदिर परिसर है। यह स्थान उदयपुर से लगभग १८ किमी उत्तर में दो पहाड़ियों के बीच स्थित है। वैसे उक्त स्थान का नाम ‘कैलाशपुरी’ है परन्तु यहाँ एकलिंग का भव्य मंदिर होने के कारण इसको एकलिंग जी के नाम से पुकारा जाने लगा। भगवान शिव श्री एकलिंग महादेव रूप में मेवाड़ राज्य के महाराणाओं तथा अन्य राजपूतो कुल देवता हैं।मान्यता है कि यहाँ में राजा तो उनके प्रतिनिधि मात्र रूप से शासन किया करते हैं। इसी कारण उदयपुर के महाराणा को दीवाण जी कहा जाता है।ये राजा किसी भी युद्ध पर जाने से पहले एकलिंग जी की पूजा अर्चना कर उनसे आशीष अवश्य लिया करते थे। यहाँ मन्दिर परिसर के बाहर मन्दिर न्यास द्वारा स्थापित एक लेख के अनुसार डूंगरपुर राज्य की ओर से मूल बाणलिंग के इंद्रसागर में प्रवाहित किए जाने पर वर्तमान चतुर्मुखी लिंग की स्थापना की गई थी।[1] इतिहास बताता है कि एकलिंग जी को ही को साक्षी मानकर मेवाड़ के राणाओं ने अनेक बार यहाँ ऐतिहासिक महत्व के प्रण लिए थे। यहाँ के महाराणा प्रताप के जीवन में अनेक विपत्तियाँ आईं, किन्तु उन्होंने उन विपत्तियों का डटकर सामना किया। किन्तु जब एक बार उनका साहस टूटने को हुआ था, तब उन्होंने अकबर के दरबार में उपस्थित रहकर भी अपने गौरव की रक्षा करने वाले बीकानेर के राजा पृथ्वी राज को, उद्बोधन और वीरोचित प्रेरणा से सराबोर पत्र का उत्तर दिया। इस उत्तर में कुछ विशेष वाक्यांश के शब्द आज भी याद किये जाते हैं।

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