आईए जानते हैं हिमाचल प्रदेश की कशिश से लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जयंती के बारे में।
बाल लेखिका कशिश।
भारत के इतिहास के पन्नों को पलटा जाये, तो कई ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने भारत की आजादी के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किये।
उन्हीं में से एक हैं ‘बाल गंगाधर तिलक’, जिनका नाम लेने में आज भी बहुत गर्व होता है। वे आधुनिक भारत के एक प्रमुख वास्तुकार थे। वे भारत के लिए स्वराज के नियम के प्रमुख समर्थक थे। उनका कथन था कि –‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार हैं, और मैं इसे पा कर रहूँगा’। इन्होंने भारत के संघर्ष के दौरान एक क्रांतिकारी के रूप में कार्य किया। उन्हें उनके समर्थकों ने सम्मानित करने के लिए ‘लोकमान्य’ का ख़िताब दिया।
23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी में बाल गंगाधर तिलक का जन्म हुआ।
वे एक महान विद्वान व्यक्ति थे, जिनका मानना था कि आजादी एक राष्ट्र के कल्याण के लिए सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है।
तिलक जी ने अंग्रेजों द्वारा भारत में कराई जा रही शैक्षिणक प्रणाली का कठोरता से विरोध किया। इसके साथ ही उन्होंने ब्रिटिश छात्रों की तुलना में भारतीय छात्रों के साथ हो रहे असमान व्यवहार के खिलाफ भी विरोध किया, और भारत की सांस्कृतिक विरासत के लिए इसकी पूरी तरह से उपेक्षा की। उनके अनुसार भारतीयों को दी जाने वाली शिक्षा पर्याप्त नहीं थी, और भारतीय इससे अनजान और अज्ञानी बने रहते थे। इसलिए उन्होंने सन 1880 में भारतीय युवाओं के लिए राष्ट्रवादी शिक्षा को प्रेरित करने एवं शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने के उद्देश्य से अपने कॉलेज के साथी विष्णु शास्त्री चिपलूनकर, महादेव बल्लाल नामजोशी और गोपाल गणेश अगरकर के साथ मिलकर डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी की शुरुआत की।
तिलक जी ने देशभक्ति के साथ भारतियों को प्रभावित किया, उन्होंने कांग्रेस को एक जन आंदोलन बना दिया। उन्होंने एक प्रसिद्ध नारा दिया ‘स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार हैं और मैं इसे पा कर रहूँगा’।
सन 1915 में तिलक जी ने देखा कि प्रथम विश्व युद्ध के चलते भारत की राजनीती तेजी से बदल रही थी। उनके जेल से रिहा होने के बाद लोगों ने उसका उत्सव मनाया। इसके बाद उन्होंने एक शांत दृष्टिकोण के साथ राजनीति में दोबारा कदम रखा। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में फिर से शामिल हुए थे, लेकिन वे कांग्रेस के बटवारे के चलते दोनों गुटों के बीच सुलह कराने की कोशिश में असमर्थ रहे। फिर उन्होंने यह कोशिश करना छोड़ दिया। अपने साथियों के साथ फिर से एक जूट होने का फैसला करते हुए तिलक जी ने सन 1916 में युसूफ बैप्टिस्टा, एनी बसेंट और मुहम्मद अली जिन्नाह के साथ मिल कर पूरे भारत में होम रूल लीग की स्थापना की।
हालांकि तिलक ने मजबूत राष्ट्रवादी भावनाओं को विकसित किया, वह एक सामाजिक रूढ़िवादी थे। वह एक हिंदू थे और हिंदू शास्त्रों के आधार पर धार्मिक और दार्शनिक टुकड़े लिखते हुए अपना बहुत समय बिताया था। वह अपने समय के सबसे लोकप्रिय प्रभावकों में से एक थे, एक महान वक्ता और मजबूत नेता जिन्होंने लाखों लोगों को अपने कारणों से प्रेरित किया था।
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