जानिए अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस के बारे में हिमाचल प्रदेश की कशिश से।
बाल लेखिका कशिश।
“भावनाएं द्रवित हो बनते शब्द
जब शब्द नहीं होते अभिव्यक्त
हम आहों से कुछ कहते हैं
आहैं भी अक्षम हो जाए
तब गीतों का माध्यम चुनते हैं
गीत नहीं पूरे पढ़ते तो अनायास
हमारे हाथ नृत्य करने लगते हैं
पांव थिरकने लगते हैं!”
नृत्य एक सशक्त अभिव्यक्ति है जो पृथ्वी और आकाश से संवाद करती है। हमारी खुशी हमारे भय और हमारी आकांक्षाओं को व्यक्त करती है ।
नृत्य अमूर्त है फिर भी जन के मन के संज्ञान और बोथ को परिलक्षित करता है। नृत्य मन की दशाओं और चरित्र को दर्शाता है।
प्रत्येक वर्ष 29 अप्रैल को विश्व स्तर पर “अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस” मनाया जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस की शुरुआत 29 अप्रैल, 1982 को हुई थी।
यूनेस्को की सहयोगी अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संस्था की सहयोगी अंतरराष्ट्रीय नाच समिति ने 29 अप्रैल को नृत्य दिवस के रूप में स्थापित किया था।
एक महान रिफॉर्मर जीन जॉर्ज नवेरे की जन्म की स्मृति में यह दिन “अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस” के रूप में मनाया जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस को पूरे विश्व में मनाने का उद्देश्य जनसाधारण के बीच नृत्य की महत्ता का अलख जगाना था।
साथ ही लोगों का ध्यान विश्व स्तर पर इस और आकर्षित करना था। जिससे लोगों में नृत्य के प्रति जागरूकता फैले ,साथ ही सरकार द्वारा पूरे विश्व में नृत्य की शिक्षा की सभी प्रणालियों में एक उचित जगह उपलब्ध कराना था।
कहा जाता है कि आज से 2000 वर्ष पूर्व त्रेता युग में देवताओं की विनती पर ब्रह्मा जी ने नृत्य वेद तैयार किया।
तभी से नृत्य की उत्पत्ति संसार में मानी जाती है।
इस नृत्य वेद में सामवेद,अथर्ववेद,यजुर्वेद व ऋग्वेद से कई चीजों को शामिल किया गया।
जब नृत्य वेद की रचना पूरी हो गई तब नृत्य करने का अभ्यास भारतमुनि के सौ पुत्रों ने किया।
सन 2005 में नृत्य दिवस को प्राथमिक शिक्षा के रूप में केंद्रित किया गया। विद्यालयों में बच्चों द्वारा नृत्य पर कई निबंध व चित्र भी बनाए गए 2007 में नृत्य को बच्चों को समर्पित किया गया।
कहा जाता है कि आज से 2000 वर्ष पूर्व त्रेता युग में देवताओं की विनती पर ब्रह्मा जी ने नृत्य वेद तैयार किया।
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