जानिए भारत छोड़ो आंदोलन के बारे में ।
बाल लेखिका कशिश।
भारत छोड़ो आंदोलन का ऐतिहासिक नारा ‘यूसुफ मेहर अली’ के द्वारा दिया गया था। द्वितीय विश्व युद्ध में अंग्रेज बुरी तरह से हार गए थे। इस हार के बाद से अंग्रेजों का वर्चस्व दुनिया में घटने लगा था। इस बात को ध्यान में रखते हुए महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की। भारत छोड़ो आंदोलन भारतीय इतिहास के सबसे बड़े आन्दोलनों में से एक है। 8 अगस्त, 2023 को भारत ने भारत छोड़ो आंदोलन के 82 साल पूरे किए है, जिसे ‘अगस्त क्रांति’ भी कहा जाता है।
भारत छोड़ो आंदोलन सही मायने में एक जन आंदोलन था, जिसमें लाखों आम भारतीयों ने भाग लिया था। Quit india movement की तरफ बड़ी मात्रा में युवा आकर्षित हुए। वे अपने स्कूल कॉलेज की पढ़ाई को छोड़कर इस आंदोलन का हिस्सा बने थे। इस आंदोलन ने भारत की स्वतंत्रता में एक बड़ी भूमिका अदा की थी। भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत महात्मा गाँधी के द्वारा 8 अगस्त 1942 को की गई थी।
महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन को समाप्त करने का आह्वान किया और मुंबई में ‘अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी’ के सत्र में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया। आपको बता दें कि गांधीजी ने ग्वालिया टैंक मैदान में अपने ऐतिहासिक भाषण में “करो या मरो” का नारा दिया था, जिस स्थान को वर्तमान समय में ‘अगस्त क्रांति मैदान’ के नाम से जाना जाता है।
भारत छोड़ो आंदोलन के शुरू होने के मुख्य कारणों में से एक “क्रिप्स मिशन” का फेल होना था। इस मिशन को स्टेफोर्ड क्रिप्स के नेतृत्व में भारत में एक नए संविधान एवं स्वशासन के निर्माण से संबंधित प्रश्न को हल करने के लिये भेजा गया था। यह मिशन विफल हो गया क्योंकि इसने भारत के लिये पूर्ण स्वतंत्रता नहीं बल्कि विभाजन के साथ डोमिनियन स्टेटस की पेशकश की। भारतीयों को पूर्ण स्वराज चाहिए था। इसलिए भारतीयों के द्वारा इस मिशन का जमकर विरोध किया गया। आम जनता की मांग को देखते हुए महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की।
भारत छोड़ो आंदोलन ने भारत के लोगों में भारत की आज़ादी के लिए नई अलख जगा दी थी।
इस आंदोलन ने अंग्रेजों को यह बता दिया कि भारत में अब उनका शासन ज्यादा नहीं चलने वाला।
इस आंदोलन में भारत के लोगों को जाति, धर्म और भाषा से ऊपर उठकर एक होने के लिए प्रेरित किया।
इस आंदोलन ने समाज के हर वर्ग को आज़ादी की लड़ाई से जोड़ने का काम किया था।
इस आंदोलन के कारण महिलाऐं भी अपने घरों से बाहर आईं और आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लिया।
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