जानिए हरियाली तीज के बारे में।
बाल लेखिका कशिश।
जैसे ही कोई तीज-त्यौहार पास आने लगता है, वैसे ही हम सभी लोगों के मन में उत्सुकता और खुशियां बढ़ने लगती हैं।
हरियाली तीज का उत्सव श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। यह उत्सव महिलाओं का उत्सव है। सावन में जब सम्पूर्ण प्रकृति हरी ओढ़नी से आच्छादित होती है उस अवसर पर महिलाओं के मन मयूर नृत्य करने लगते हैं। वृक्ष की शाखाओं में झूले पड़ जाते हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में इसे कजली तीज के रूप में मनाते हैं।सुहागन स्त्रियों के लिए यह व्रत बहुत महत्व रखता है। आस्था, उमंग, सौंदर्य और प्रेम का यह उत्सव शिव-पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। चारों ओर हरियाली होने के कारण इसे हरियाली तीज कहते हैं। इस अवसर पर महिलाएं झूला झूलती हैं, लोकगीत गाती हैं और आनन्द मनाती हैं।
ऐसे ही हम लोगों को खुशियां देने हरियाली तीज भी आ गई है। हरियाली तीज वाले दिन महिलाएं हरी साड़ी, हरी चूड़ियां पहनती हैं। इस दिन हरे रंग का विशेष महत्व है। हरा रंग मूलतः प्रकृति का रंग होता है। हरे रंग को ही सेहत का खजाना माना गया है। तो इस बार तीज पर क्यों न इन्हीं हरी सब्जियों के साथ मनाएं हेल्दी त्योहार।
हरियाली तीज से ये समझना भी जरुरी है कि हरा रंग सिर्फ बाहर से ही शरीर को सुंदर नहीं बनाता, बल्कि आंतरिक तौर पर भी शरीर को स्वस्थ रखता है। इसलिए लंबे समय तक अच्छे स्वास्थ्य के लिए हमें हरे रंग को अपनी डाइट में हमेशा शामिल करना चाहिए।
इस दिन महिलायें अपने हाथों, कलाइयों और पैरों आदि पर विभिन्न कलात्मक रीति से मेंहदी रचाती हैं। इसलिए हम इसे मेहंदी पर्व भी कह सकते हैं। इस दिन सुहागिन महिलायों द्वारा मेहँदी रचाने के पश्चात् अपने कुल की वृद्ध महिलाओं से आशीर्वाद लेने की भी एक परम्परा है।
कहा जाता है कि इस दिन माता पार्वती सैकड़ों वर्षों की साधना के पश्चात् भगवान् शिव से मिली थीं।
यह भी कहा जाता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए 107 बार जन्म लिया फिर भी माता को पति के रूप में शिव प्राप्त न हो सके। 108 वीं बार माता पार्वती ने जब जन्म लिया तब श्रावण मास की शुक्ल पक्ष तृतीया को भगवन शिव पति रूप में प्राप्त हो सके।
तभी से इस व्रत का प्रारम्भ हुआ। इस अवसर पर जो सुहागन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके शिव -पार्वती की पूजा करती हैं उनका सुहाग लम्बी अवधि तक बना रहता है।
साथ ही देवी पार्वती के कहने पर शिव जी ने आशीर्वाद दिया कि जो भी कुंवारी कन्या इस व्रत को रखेगी और शिव पार्वती की पूजा करेगी उनके विवाह में आने वाली बाधाएं दूर होंगी साथ ही योग्य वर की प्राप्ति होगी। सुहागन स्त्रियों को इस व्रत से सौभाग्य की प्राप्ति होगी और लंबे समय तक पति के साथ वैवाहिक जीवन का सुख प्राप्त करेगी। इसलिए कुंवारी और सुहागन दोनों ही इस व्रत का रखती हैं।
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