जानिए जोधपुर का मेहरानगढ़ किला क्यों है इतना खास और रहस्यमय।
शिवाक्ष शर्मा।
राजस्थान में कई ऐतिहासिक इमारतें मौजूद हैं। लेकिन जोधपुर का मेहरानगढ़ किला सबसे ख़ास है। 400 फीट की ऊंची बिल्कुल सीधी खड़ी चट्टान पर स्थित यह किला भारत के सबसे भव्य और विशाल इमारतों में से एक है। किले से जोधपुर का बेहतरीन नजारा एकदम साफ दिखता है।
15 वीं शताब्दी में इस किले की नींव राव जोधा द्वारा रखी गई थी, लेकिन इसका पूरा निर्माण कार्य महाराज जसवंत सिंह ने करवाया था।
जोधपुर शहर के ठीक बीचो-बीच में स्थित इस किले को देखने के लिए देश और विदेश से बड़ी तादाद में टूरिस्ट आते हैं। यह किला भारत के सबसे समृद्धशाली अतीत का प्रतीक माना जाता है। इस किले में काफी ऊंची-ऊंची और मोटी-मोटी दीवारें है जो इसे विशाल बनाती हैं। किले में 7 द्वार है। किले के पहले द्वार पर हाथियों के हमले से बचने के लिए नुकीली कीलें लगवाई गई थी। इस किले में मोती महल, फूल महल और शीश महल खास हैं। यह किला दिल्ली के कुतुब मीनार की ऊंचाई से भी 73 मीटर ऊंचा है। किले में ही चामुंडा माता का मंदिर है। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि देवी इसी किले से पूरे शहर की निगरानी रखती हैं।
ये किला जितना भव्य है उतना ही रहस्यमय भी है। माना जाता है कि मेहरानगढ़ से पहले राठौड़ वंश मंडोर से शासन करता था । हालाँकि, बढ़ते हमलों ने महाराजा राव जोधा को अपनी राजधानी को एक नए स्थान पर ले जाने पर विचार करने के लिए प्रेरित किया। तभी उन्होंने जोधपुर के ऊपर स्थित बाकुरचेरिया नामक चट्टानी पहाड़ी को अपने नए महल के लिए आदर्श स्थान के रूप में चुना। इस क्षेत्र में चीरिया नाथजी (पक्षियों के भगवान) नामक एक साधु रहते थे। जब महाराजा ने उनसे क्षेत्र खाली करने के लिए कहा, तो उन्होंने मना कर दिया।
जब कई प्रयास विफल हो गए, तो महाराजा ने करणी माताजी (एक दिव्य योद्धा भगवान) की मदद मांगी और आखिरकार उन्होंने यह उपाय किया। चीरिया नाथजी ने मेहरानगढ़ किले को हटाने के लिए हामी भर दी, लेकिन इससे पहले उन्होंने मेहरानगढ़ किले को श्राप दे दिया । उन्होंने महाराजा से कहा कि उनकी भूमि हमेशा पानी की कमी से ग्रस्त रहेगी।
हालांकि महाराजा ने आहत साधु को मेहरानगढ़ किले के पास एक घर और मंदिर देकर शांत करने की कोशिश की, लेकिन श्राप का असर खत्म नहीं हो सका। कई पुजारियों और बुद्धिमान लोगों ने सुझाव दिया कि इस श्राप की ताकत को कम करने के लिए मानव बलि दी जानी चाहिए। यहाँ के एक निवासी राजाराम मेघवाल ने आगे आकर स्वेच्छा से बलिदान देने की पेशकश की। उनकी एकमात्र शर्त यह थी कि उनके परिवार को हमेशा के लिए सहायता दी जाए। इस प्रकार, जोधपुर किले के निर्माण से पहले उन्हें जीवित ही दफना दिया गया।
अगली बार जब भी आप राजस्थान घूमने का प्लान बनाये तो इस किले को देखना ना भूले।
राजस्थान के 75वें स्थापना दिवस के मौके पर डिजिटल बाल मेला ने नये अभियान “रूट्स ऑफ राजस्थान” की है। आपको बता दें की इस अभियान का उद्देश्य बच्चों के दृष्टिकोण से राजस्थान की कला, संस्कृति एवं पर्यटन को बढ़ावा देना एवं बच्चों को राजस्थान की विरासत से परिचित करवाना है।
इसमें बच्चों को आठ से दस मिनट तक की वीडियो बनानी है जिसमें राजस्थान के पर्यटन स्थल एवं राजस्थान की कला और संस्कृति का विवरण हो। ये अभियान 30 जून तक चलेगा।
अपनी वीडियो को आप 30 जून तक डिजिटल बाल
मेला के टेलीग्राम, वाट्सएप एवं अधिकारिक वेबसाइट पर भेज सकते हैं। हर महीने सबसे श्रेष्ठ वीडियो भेजने वाले बच्चे को मोबाइल फोन ईनाम में मिलेगा एवं टॉप 100 बच्चों को विश्व पर्यटन दिवस पर यानी 27 सितंबर को तीन दिन का जयपुर भ्रमण करवाया जाएगा एवं तभी प्रथम स्थान पर रहने वाले बच्चे को पचास हज़ार का ईनाम, द्वितीय स्थान को बीस हज़ार, तृतीय स्थान को दस हज़ार के ईनाम से नवाज़ा जाएगा।
डिजिटल बाल मेला इससे पहले भी बच्चों की रचनात्मकता बढ़ाने के लिए “शेड्स ऑफ कोविड”
म्यूजियम थ्रू माय आइज” जैसे अभियानों का आयोजन कर चुका है।
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