जानिए मधुमेह जागृति दिवस के बारे में हनुमानगढ़ के पारस माली से।
पारस माली।
मधुमेह जागृति दिवस भारत अपनी युवा आबादी की बदौलत आने वाले समय में दुनिया की एक बड़ी आर्थिक शक्ति बनने के लिए प्रयासरत है लेकिन इस युवा आबादी के एक बड़े भाग में लोगों की शिराओं में धीरे-धीरे मीठा जहर घुलने की आशंका विशेषज्ञों की नींद उड़ाए हुए है, क्योंकि आबादी का यही हिस्सा अर्थव्यवस्था के लिए सबसे अधिक उत्पादक होगा। विशेषज्ञों के अनुसार आने वाले समय में मधुमेह रोगियों की संख्या में वृद्धि चिंता का विषय है, लेकिन चिंता का असली कारण यह है कि इस बीमारी से सबसे अधिक पीड़ित होने वाले आयु वर्ग के लोग हैं। पश्चिम में अधिकांश लोगों को जीवन के छठे दशक में मधुमेह होता है, जबकि भारत में इस बीमारी की दर 30 से 45 वर्ष की आयु वर्ग में सबसे अधिक है। मधुमेह विशेषज्ञों के अनुसार पश्चिमी देशों में पहली बार मधुमेह से पीड़ित होने वाले लोगों की संख्या साठ वर्ष से अधिक है। इसका मतलब यह है कि इन देशों में मधुमेह उन लोगों को कम प्रभावित कर रहा है जो देश की उत्पादक शक्ति हैं। भारत में तस्वीर बिल्कुल उलट है। मधुमेह पर किताब लिख चुके डॉ. झिंगन ने कहा कि भारत में मधुमेह के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि यह बीमारी युवाओं के साथ-साथ शहरी आबादी को भी अधिक प्रभावित कर रही है। इसका मतलब यह है कि हमें शहरों में मधुमेह के बारे में बड़े पैमाने पर जागरूकता बढ़ानी होगी और लोगों को अपनी जीवनशैली बदलने के लिए प्रेरित करना होगा। उन्होंने कहा कि आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में लोग देसी घी और भारी भोजन का सेवन खूब करते हैं, लेकिन शहरी क्षेत्रों की तुलना में इन क्षेत्रों में मधुमेह के मामले कम हैं, क्योंकि वे आज भी कठोर जीवन जीते हैं। इसके विपरीत, शहरी जीवन ने मनुष्य की शारीरिक श्रम की संभावनाओं को काफी हद तक कम कर दिया है। उन्होंने कहा कि शहरी जीवन में लोग खानपान के मामले में बहुत लापरवाह होते जा रहे हैं। हमारे भोजन में तले हुए खाद्य पदार्थ, प्रसंस्कृत डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों की मात्रा बढ़ती जा रही है। हमारी जीवनशैली में भी हम चाहते हुए या न चाहते हुए भी तमाम तरह के तनाव पाल रहे हैं। इन सब कारणों से शहरी लोगों में मधुमेह होना स्वाभाविक है।
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