जानिए ऑटिज्म जागरूकता दिवस के बारे में।
शिवाक्ष शर्मा।
ऑटिज्म (स्वलीनता), एक ऐसी मानसिक बीमारी है, जिससे ग्रस्त लोगों में व्यवहार से लेकर कई तरह की दिक्कतें होती हैं। ऑटिज्म के शुरुआती लक्षण 1-3 साल के बच्चों में नजर आते हैं। लोगों को जागरूक करने के लिए हर वर्ष दो अप्रैल को विश्व ऑटिज्म जागरुकता दिवस मनाया जाता है।
ऑटिज़्म के दौरान व्यक्ति को कई समस्याएं हो सकती हैं, यहां तक कि व्यक्ति मानसिक रूप से विकलांग हो सकता है।
ऑटिज़्म के रोगी को मिर्गी के दौरे भी पड़ सकते हैं।
कई बार ऑटिज़्म से ग्रसित व्यक्ति को बोलने और सुनने में समस्याएं आती हैं।
ऑटिज़्म जब गंभीर रूप से होता है तो इसे ऑटिस्टिक डिस्ऑर्डर के नाम से जाना जाता है लेकिन जब ऑटिज़्म के लक्षण कम प्रभावी होते हैं तो इसे ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिस्ऑर्डर (ASD) के नाम से जाना जाता है। एएसडी के भीतर एस्पर्जर सिंड्रोम शामिल है
यह बीमारी किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकती है। हालांकि, महिलाओं की तुलना में पुरुषों को अधिक होता है। इसके अलावा, बच्चे ऑटिज्म के अधिक शिकार होते हैं। इस बीमारी में बच्चा अपनी ही धुन में रहता है। यह दिमाग के विकास के दौरान होने वाले विकार है। डॉक्टर के मुताबिक बच्चों में ऑटिज्म के लक्षण तीन साल की उम्र में ही नजर आने लगते हैं। इस बीमारी में दिमाग का विकास सामान्य बच्चों से बिल्कुल अलग होता है। वे एक ही काम को बार-बार दोहराते हैं। कोई डरा सहमा होता है तो कोई किसी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं देते हैं।
ऑटिज्म के विकार को दूर किया जा सकता है। इसके लिए माता-पिता समेत लोगों को जागरूक होने की जरूरत है।
डिजिटल बाल मेला की शुरुआत कोरोना काल में बच्चों की बोरियत को दूर करने के लिए जयपुर के महाराजा सवाई मानसिंह विद्यालय की छात्रा जान्हवी शर्मा द्वारा की गई थी। इसके तहत अभी तक कई अभियानों का आयोजन किया जा चुका है जिसमें “बच्चों की सरकार कैसी हो?” “मैं भी बाल सरपंच” “कौन बनेगा लोकतंत्र प्रहरी” “म्यूजियम थ्रू माय आइज” आदि शामिल हैं।
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